Monday, October 4, 2010

किसी से कब कहाँ किसी को किसी से प्यार हो जाए

किसी  से कब  कहाँ किसी को  किसी से  प्यार  हो  जाए
तुम्हारी  याद  करते  करते  कहीं   ये  दिल हार ना  जाए
कभी  सोचो  हमें  तुम  भी  तो  शायद  प्यार  हो  जाए 
तुम्हारे  खुद  मना  करने  से  भी  इकरार  हो  जाए
अभी  तो  हर  taraf  हमको  नज़र  आते  हैं  तेरे  साए 
कभी  कुछ  करो  ऐसा  की  कल्पना  साकार  हो  जाए
बहुत  तनहाइयाँ  हैं  हर  तरफ  कहीं  हम  खो  ना  जाएँ 
कभी  तुम  भी  बढाओ  हाँथ  के  सहारा  हमको  मिल  जाए
हमेशा  सोचते  तुम  हो  की  चला  जायेगा  दूर  ये  '
ग़ैर'
कभी  हमसे  भी  तुम  पूछो  तुम्हारे  दिल  में  रहते  हैं 

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